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Guruji on Purusharth

प्रत्येक राष्ट्र का अपना विशिष्ट जीवन संगीत रहता है और उसी के लय तरंग में राष्ट्र प्रगति पथ पर अग्रसर होता है। अपने हिंदू राष्ट्र ने भी अनादि काल से एक अनुपम विशिष्टता को सुरक्षित रखा है। हमारे लिए भौतिक सुख के स्वरूप, अर्थात अर्थ और काम मनुष्य के एक अंश मात्र हैं,हमारे महान पूर्वजों ने घोषणा की है कि मानव पुरुषार्थ के दो और भी पहलू हैं और वे हैं धर्म एवं मोक्ष। उन्होंने हमारे समाज की रचना इस चतुर्विध प्राप्ति के आधार पर की है। यह चतुर्विध पुरुषार्थ हैं धर्म अर्थ काम व मोक्ष। अति प्राचीन काल से हमारा समाज केवल संपत्ति एवं वैभव के लिए प्रसिद्ध नहीं रहा है वरन इससे भी अधिक जीवन के उन अन्य दो पहलुओं के लिए रहा है। इसलिए हम उच्च नैतिक आध्यात्मिक एवं दार्शनिक लोग कहे जाते हैं जिन्होंने अपना अंतिम लक्ष्य अपने ईश्वर से सीधे संपर्क करने अर्थात मोक्ष से कम नहीं रखा। - श्री गुरूजी

Author: Guruji

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