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सभी मुग्ध थे उसकी असामान्य प्रतिभा पर

आठ वर्ष की आयु में विलक्षण बुद्धि का बालक नरेंद्र उस समय बंगाल के सुप्रसिद्ध शिक्षक पंडित ईश्वरचंद्र विद्यासागर के विद्यालय का छात्र था.

विद्यासागर पांडित्य, सादा जीवन, व सरल निष्कपट व्यवहार के जीते जागते आदर्श थे.बालक नरेंद्र में विविध प्रतिभाओं का विलक्षण संयोग दीख पड़ता था. पढ़ने में तेज, खेल-व्यायाम में आगे, विनोद चपलता में सिरमौर, बुद्धि कौशल्य में प्रखर, साहस में सर्वोपरि एवं सहृदयता में अग्रगण्य बालक नरेंद्र विद्यासागर जी के स्नेह का पात्र था.

एक दिन कक्षा में अध्यापक बड़ी परिश्रम के साथ पढ़ा रहे थे. आधे से अधिक बालक पाठ में तन्मय थे, पीछे नरेंद्र अपने कुछ साथियों के साथ गप्पे मार रहा था.उनकी परस्पर की बातचीत इतनी रोचक थी कि श्रोताओं में से कोई भी पाठ की ओर ध्यान नहीं दे रहा था. अध्यापक को यह देख कर अच्छा नहीं लगा. उसकी भूल अनुभव करवाने के लिए पढ़ाते पढ़ाते उन्होंने पठित विषय से संबंधित कुछ प्रश्न अक्समात ही नरेंद्र से ही पूछ लिए. अध्यापक को विश्वास था कि नरेंद्र उत्तर ना दे सकेगा. साथियों को लगा कि उनका साथी पकड़ा गया है. सच्चाई तो यह है कि नरेंद्र उनकी बातों में ध्यानमग्न था. परंतु सभी के आश्चर्य का उस समय ठिकाना ना रहा जब उन्होंने देखा कि नरेंद्र ने उन सभी प्रश्नों के ठीक-ठीक उत्तर दे दिए जो उससे पूछे गए थे. फिर उन्होंने पूछा, कौन बातें कर रहा था? सहज रूप में ही सभी की दृष्टि नरेंद्र की ओर घूम गई परंतु अध्यापक को विश्वास कैसे होता. नरेंद्र ने तो सभी प्रश्नों के उत्तर देकर सिद्ध कर दिया था कि उसका ध्यान पठित विषय पर केंद्रित था. दंड देने के उद्देश्य से अध्यापक ने कहा, जो बच्चे बातें कर रहे थे खड़े हो जाएं! नरेंद्र भी खड़ा हो गया. जब अध्यापक ने उसे खड़ा होने के लिए मना किया तो वह बोल उठा श्रीमान मैं बातें कर रहा था अतः मुझे खड़ा होना चाहिए. अध्यापक ने चकित होकर पूछा तुम तो मेरी बातों पर ध्यान दे रहे थे?

नरेंद्र तुरंत बोल उठा मैं आपके अध्यापन को ध्यान से सुन भी रहा था साथ ही बातें भी कर रहा था सभी विस्मित थे.नरेंद्र ने उनकी विस्मित चेहरों को देखकर बालोचित सरलता से ही पूछ लिया, क्यों आचार्य जी क्या दो भिन्न-भिन्न कामों को भी एक व्यक्ति साथ-साथ नहीं कर सकता है? बालक की प्रतिभा सार्थक हो उठी थी. सभी मुग्ध थे उसकी असामान्य शक्ति पर!

Author: राणा प्रताप सिंह

Source: स्वामी विवेकानंद प्रेरक जीवन प्रसंग Volume 1, page 13

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