गटनायक का मार्गदर्शन
संपूर्ण प्रान्त के विषय में हमें ज्ञात हुआ है कि अभी अनेक शाखाओं में गट व्यवस्था का कार्य सुनियोजित रीति से नहीं चल रहा है। सर्व स्वयंसेवकों को एकत्रित रखना तथा उनके द्वारा नए स्वयंसेवकों को शाखा में लाने के लिए कार्यक्षम गट व्यवस्था आवश्यक है और यही बात दुर्लक्षित है। इस ओर ध्यान देना चाहिए।
गटनायकों से मैंने पूछा था कि स्वयंसेवकों को आवश्यकता होती है तब आप उनकी सहायता करते हैं क्या? पैसा मिले या ना मिले, जिन्हें आवश्यकता हैं उन्हें आप पढ़ाई में मदद करें यह सहायता का एक प्रकार है, यदि गटनायक यह कार्य नहीं कर सकते हैं तो उच्च अधिकारियों को उनका मार्गदर्शन करना चाहिए।
पूर्व काल में घटित एक प्रसंग मुझे याद है हमारा एक अच्छा कार्यकर्ता मुझसे मिलने आया। अभ्यास बिल्कुल नहीं करता था, यहाँ तक कि उसे तो अपने अभ्यास के विषय भी मालूम नहीं थे। विद्यापीठ जाकर मैंने अभ्यासक्रम पुस्तिका प्राप्त की। उसके पास पुस्तकें भी नहीं थी। उसकी पुस्तकें अन्य अध्ययनशील छात्र ले गए थे। मैंने यह सोचा कि यह छात्र उत्तीर्ण होना ही चाहिए क्योंकि संघ कार्यकर्ता अनुत्तीर्ण होना उचित नहीं। उसका अपयश बुरा उदाहरण प्रस्तुत करेगा। यदि वह अनुत्तीर्ण होता है तो अनेक पालक अपने पालितों को उसके साथ नहीं रहने देंगे। मैं कुछ शिक्षकों से मिला और उन्हें पढ़ाई में उसकी सहायता करने के लिए तैयार किया। उसे पढ़ाने के लिए मुझे भी अनेक विषयों का अभ्यास करना पड़ा क्योंकि उसने जो विषय लिए थे वह मेरे नहीं थे। मैं सुबह 5:30 बजे उसे पढ़ाता था। आखिर वह परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ। उन दिनों यह अपवादात्मक अवस्था नहीं थी सभी शाखाओं में यह प्रथा थी। ज्येष्ठ विद्यार्थी नए विद्यार्थियों की सहायता करते थे, कई बार अपने पड़ोसियों से भी मदद लेते थे।
यदि हम अपने स्वयंसेवकों का ध्यान नहीं रखेंगे और अपने आचरण से उन्हें यह विश्वास नहीं दिलाएँगे कि उनका स्वयंसेवकत्व तो उनके कल्याण के लिए ही है तो हम उन्हें एकत्र नहीं रख सकेंगे। गटनायक, स्वयंसेवक तथा शिक्षकों का इस तरह का व्यवहार एक आदत सी बन जानी चाहिए वह भी अकृत्रिम रूप से।
Author: Shri Guruji
Source: श्री गुरूजी समग्र ३