हृदय में आग
मुझमें कर्तृत्व नहीं है ऐसा कोई भी अपने बारे में ना समझे। यदि वह चाहे तो अपने अंदर की सुप्त शक्तियां जागृत कर सकता है। संघ का काम करने की लगन व इच्छा उत्पन्न करने की आवश्यकता रहती है। स्वतः की शक्ति का अनुमान हर किसी को नहीं होता। प्रबल इच्छा हो और अपने काम पर अंतःकरण का केंद्रीकरण हुआ तो कर्तृत्व जागृत होता है। जीवन में करने योग्य संघ कार्य ही एकमात्र कार्य है। यह बात दादाजी के मन में जच गई थी। अंतःकरण इस बात पर केंद्रित होने से उनका कृतित्व जागृत हुआ, उनका नाम मुंबई के सारे सुविद्य लोग जानने लगे। उन्होंने मानो शून्य से जगत पैदा किया। जो मरुस्थल माना जाता था वहां बाग का निर्माण किया। उनकी शव यात्रा में दो हजार स्वयं सेवक थे। मामूली लगने वाले आदमी की ऐसी शव यात्रा मुंबई के लोगों ने देखी नहीं थी।
जैसा काम दादाजी ने मुंबई में किया। वैसा हमें अपने यहां करना है। अपने मन में समाधान आनंद प्रसन्नता उत्पन्न कर सुखासीन करने वाला नहीं अपितु लगन पैदा करने वाला काम करना है। अपने हृदय में आग लगनी चाहिए कि अभी तक काम नहीं कर सका। किया भी तो कुछ अधिक नहीं कर पाया। काम के पीछे नींद भूख प्यास ना लगे। ऐसी अंगार अपने हृदय के अंदर नहीं जगी, दिन बीत गया, परंतु संघ का कार्य नहीं हुआ, इस विचार से दिल मानो जल रहा हो। ऐसी बेचैनी हमारे अंदर उत्पन्न होनी चाहिए। दिन में हम कितने फिजूल, अहित कारक, स्वार्थी काम करते हैं इसकी ओर हमेशा अपना ध्यान रहे।
Author: Shri Guruji
Source: श्री गुरूजी समग्र ३